Friday, November 14, 2025
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दुर्ग नगर निगम का मुद्रा राक्षस कौन ….. ??? लगातार बढ़ा रहा है आकार … दिनोंदिन विकराल ….

चैनल 9 . लाइफ 
सबसे पहले आज के दौर में मुद्रा राक्षस की परिभाषा समझना जरूरी है …
साहित्य जगत में इसके मायने अलग हैं।
नगर निगम में प्रचलित शब्दावली में भ्रष्टाचार के दैत्य को ही मुद्रा राक्षस कहते हैं। कमीशनखोरी, टेबल के नीचे से लेनदेन, करप्शन, भ्रष्टाचार की एवज में लिफाफे में भरकर दी जाने वाली रकम को ही वर्तमान समय में मुद्रा राक्षस का नया नाम दिया गया है।
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अब जरा दुर्ग नगर निगम मुख्यालय की ओर चलें …
यहां सवाल किये जा रहे हैं कि दुर्ग‌ नगर निगम का मुद्रा राक्षस कौन है ?
न सिर्फ नगर निगम दुर्ग, बल्कि शहर और जिले की राजनीति में भी यह सवाल पूछा जा रहा है।
हाल के दिनों में यह सवाल शहर और जिले की सीमा लांघकर राजधानी में भी गूंजने लगा है।
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दुर्ग नगर निगम का यह मुद्रा राक्षस प्रदेश के उपमुख्यमंत्री व नगरीय प्रशासन मंत्री की साख को बट्‌टा भी लगा रहा है।
साय सरकार के सुशासन की साख को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
सवाल ये है कि किसके इशारे पर साय और साव की छवि पर दाग लगाने का काम किया जा रहा है ???
कौन है दुर्ग नगर निगम का मुद्रा राक्षस ?
अफसर है या नेता ???
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पूरा मामला ऐसे समझें
दरअसल, प्रदेश में नई सरकार (यानी साय सरकार) बनने के बाद से नगर निगम दुर्ग में भ्रष्टाचार का कद एकदम से बढ़ गया। इसकी शुरुआत एडवांस कमीशनखोरी से हुई।
पिछली कांग्रेस सरकार और उससे भी पिछली भाजपा सरकार के दौर में एडवांस कमीशन की शुरुआत हुई। तब एडवांस कमीशन का आंकड़ा 3 प्रतिशत तय किया गया।
सरकारी विभागों में इस अघोषित प्रावधान के तहत ठेका लेने वाली एजेंसी ( ठेकेदार ) को विकास कार्य की कुल लागत का 3 प्रतिशत कमीशन एडवांस में देना पड़ता है। बिल मिलने से पहले … काम शुरू होने से पहले … वर्क आर्डर मिलने से पहले … एडवांस कमीशन का भुगतान करना अत्यंत आवश्यक है। ऐसा न करने पर ठेकेदार को वर्क आर्डर ही नहीं मिलता है।
नगर निगम के भ्रष्ट अफसर खुलकर कहते हैं … ये रकम ऊपर भेजी जाती है। इसमें हमें कुछ नहीं मिलता।
दुर्ग नगर निगम में मुद्रा राक्षस का आकार ऐसे बढ़ा …
साय सरकार बनने के बाद दुर्ग नगर निगम की कांग्रेसी परिषद के सारे पावर एक तरह से खत्म कर दिये गए। निगम अफसरों ने तत्कालीन महापौर धीरज बाकलीवाल और एमआईसी मेंबरों समेत कांग्रेस पार्षदों की अनसुनी शुरू कर दी। इसी दौरान अफसरों ने एडवांस कमीशन का आंकड़ा तीन प्रतिशत से बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर दिया। एडवांस कमीशन की शक्ल में मुद्रा राक्षस का आकार डेढ़ गुना से ज्यादा बढ़ गया। मुद्रा राक्षस के बढ़ते कद से यानी बढ़ती कमीशनखोरी से ठेकेदार भी पस्त हो गए। दिसंबर में निगम चुनाव से ठीक पहले करोड़ों के टेंडर हुए। 5 प्रतिशत के फरमान से पस्त ठेकेदारों को एडवांस कमीशन जमा करना पड़ा।
निगम के डेढ़ होशियार अफसरों ने खुद वसूली नहीं की। वसूली की जिम्मेदारी दो खासमखास ठेकेदारों को दी गई। दोनों ने कमीशन जमा कर साहब को रकम पहुंचा दी।
नगर निगम चुनाव की आचार संहिता लागू होने से पहले एडवांस कमीशन वसूली का चैप्टर पूरा हो गया। धड़ाधड़ विकास कार्य शुरू कराए गए।
मुद्रा राक्षस ने दूसरी बार बढ़ाया आकार
काम पूरा होने पर मुद्रा राक्षस ने फिर से कद बढ़ा दिया। ठेकेदारों से कहा गया कि विकास कार्यों के उपयोगिता प्रमाण पत्र राजधानी भेजना है। इसके लिये एक प्रतिशत का कमीशन और देना होगा। एक प्रतिशत एक्स्ट्रा कमीशन देने वाले ठेकेदारों के बिल का चेक कटेगा।
भ्रष्ट अफसरों ने फिर कहा – इसमें हमें कुछ नहीं मिलता। पूरा ऊपर चला जाएगा।
लाखों रुपए के काम कर चुके ठेकेदारों ने मजबूरी में एक प्रतिशत कमीशन और दिया। इसके बाद ठेकेदारों को दो-दो लाख रुपए का चेक दिया गया। आश्वस्त किया गया कि शासन को यूसी भेजने पर वहां से फंड जारी होने पर ही बाकी रकम का चेक मिलेगा।
लाखों रुपए के काम कर चुके ठेकेदार अब नगर निगम के चक्कर काट रहे हैं। कई ठेकेदारों ने काम अधूरा छोड़ दिया है।
ठेकेदार सवाल कर रहे हैं कि क्या मुद्रा राक्षस का आकार आगे भी बढ़ेगा। बढ़ता ही रहेगा।
बड़ा सवाल ये है कि मुद्रा राक्षस का कद किसके इशारे पर बढ़ रहा है?
वसूल की जा रही एक्स्ट्रा रकम के हिस्सेदार कौन कौन हैं?

( कई और तथ्यों के साथ करप्शन से संबंधित और खबरें जारी रहेगी। इस खबर के संबंध में अगर आपके पास अधिक जानकारी है तो मोबाइल नंबर 9479121442 पर मैसेज के माध्यम से सकते हैं। आपकी जानकारी गोपनीय रहेगी।) 

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